Wednesday 28 March 2018

'समझौता' और 'मेन विदाउट शैडो' का मंचन / राजन कुमार सिंह


आई एम ए हॉल,पटना में अभिनय आर्ट्स,पटना द्वारा संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के सौजन्य से मुक्ति बोध पर आधारित हिन्दी नाटक 'समझौता' का मंचन मणिकांत चौधरी के निर्देशन में हुआ। इसका नाट्य रूपांतरण सुमन कुमार ने किया है। स्वतंत्रता के पश्चात भारत में लालफीताशाही का एक ऐसा जंगल-तंत्र विकसित हुआ है, जिसकी अपनी परंपरा,कानून,नियम और कायदे हैं। यहां अधिकारियों और उसके अधीनस्थों के पारस्परिक सम्बन्ध स्पष्टीकरण यानी ऊपर वाले की गलती को अपना कहकर उसे सही सिद्ध करने की कला पर निर्भर करते हैं। यहाँ सच बोलना या न्याय का पक्ष लेने जैसी भावुकताएँ आपके कैरियर में बाधक हो सकती है। इस व्यवस्था में सब कुछ एक अनकहे समझौते के अंतर्गत चलता रहता है। यह एक ऐसा सर्कस है जहाँ हर शेर की खाल में भेड़ छुपा हआ है। मेहरबान सिंह शेर की खाल में छुपा हुआ ही है,जो माधव को इस व्यवस्था के अलिखित कायदे-कानून समझाता है। किस प्रकार स्पष्टीकरण देने की कला का विशेषज्ञ बन कर एक दिन वह भी इस व्यवस्था के शीर्ष पर पहुंच सकता है। लेकिन इसके लिए उसे करना पड़ेगा अपनी अंतरात्मा से एक समझौता। मंच पर भाग लेने वाले कलाकारों में मणिकांत चौधरी,शैलेश जमैयार,नवीन कुमार अमूल, अहमद खान, हसन पीरजादा,समीर कुमार, गुरप्रीत सिंह, कमलेश फगेरिया, ऋचा श्रीवास्तव,महक जैन, ईशान छाबड़ा, निकिता डोबरियाल, मन्या राजलक्ष्मी, कुलविंदर बख्शीश थे। मंच परे कलाकारों में संगीत संचालन-प्रियंका,प्रकाश-समीर कुमार का था।
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स्थानीय कालिदास रंगालय में दि स्ट्रगलर्स, पटना के तत्वाधान में तीन दिवसीय नाट्योत्सव 'स्ट्रगलर्स थियेटर फेस्टिवल' का समापन आयोजक दल द्वारा संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार के सौजन्य से ज्या पॉल सात्रे लिखित रजनीश कुमार निर्देशित नाटक 'मैन विदाउट शैडो' का मंचन के साथ हुआ। इसका नाट्य रूपांतरण जे एन कौशल ने किया है।यह नाटक आज के वर्तमान सामाजिक तथा राजनैतिक संघर्षों को वैश्विक स्तर पर प्रस्तुत करता है। जनसाधारण पर लगातार हो रहे अमानवीय मानसिक औऱ शारीरिक हमलों को भी चित्रित करता है। सीरिया पर हुए हवाई हमले इसका समसामयिक उदाहरण है। दो खास संगठन की आपसी लड़ाई में सबसे ज्यादा नुकसान आम जनता का ही होता है। जहाँ एक संगठन आतंकवाद का प्रतिनिधित्व कर रहा  है तो दूसरा सत्ता का। यह नाटक एक ऐसी परिस्थिति का चित्रण है जहाँ दोनों संगठन के कुछ लोग कुछ समय के लिए साथ होते है। उस परिस्थिति में उन्हें अपने अस्तित्व का आभास होता है। किसी खास आतंकी संगठन के पांच लोगों को हमले के बाद पकड़ लिया जाता है और पुछताछ के लिए एक गुप्त जगह पे रखा जाता है। यहाँ उन्हें भयंकर यातनाएं दी जाती हैं,ताकि वे अपने संगठन के लीडर का नाम और पता बता सके। प्रताड़ना झेलते हुए उनमें कई बार आपसी संघर्ष भी होता है। वे जानते हैं कि अंत में वे मारे जाएंगे किन्तु वास्तव में वो क्यों मर रहे है। इसका कारण वे अंत तक नहीं ढूँढ़ पाते हैं। वे सिर्फ एक उद्देश्य के लिए जिंदा थे और उसी के लिए कार्य कर रहे थे।उनका अपना अस्तित्व क्या है, ये उन्हें अंत में पता चलता है परंतु तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। मंच पर भाग लेनेवाले कलाकारों में शिवम कुमार,अंजली शर्मा,मृत्युंजय प्रसाद,रोहित कुमार,रमेश कुमार रघु,रौशन कुमार,समीर कुमार,रजनीश कुमार,सौरव सागर , राणा निलेन्द्र, मनीष भगत, सन्नी राज।मंच परे कलाकारों में मंच परिकल्पना-सत्य प्रकाश,प्रॉपर्टी निर्माण-सुनील शर्मा, संतोष राजपूत,संगीत-राजेन्द्र शर्मा नानू,संगीत संचालन-राहुल राज, रवि कुमार,प्रकाश परिकल्पना- राहुल कु० रवि,रौशन कुमार,वस्त्र-विन्यास- मो० बाबर, मो०सदरुद्दीन,रूप-सज्जा-विनय राज,मंच संचालन-विशाल कुमार तिवारी ने किया।
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आलेख- राजन कुमार सिंह



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