Thursday 12 April 2018

'जयशंकर प्रसाद की कहानी पर आधारित गुंडा' नाटक का मंचन 9.4.2018 को पटना में संपन्न

समाज और समकालीन समाज का गुंडा नन्हकू सिंह का ह्रदय हुआ उद्घाटित 


स्थानीय रंगालय में निर्माण कला मंच एवं प्रवीण सांस्कृतिक मंच के संयुक्त तत्वावधान में दो दिवसीय 'रंगकर्मी प्रवीण स्मृति सम्मान समारोह' का समापन प्रवीण सांस्कृतिक मंच,पटना द्वारा संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार के सौजन्य से विजयेन्द्र कुमार टॉक निर्देशित बहुचर्चित नाटक 'गुंडा' की प्रस्तुति के साथ हुआ। जयशंकर प्रसाद की कहानी का नाट्य रूपांतरण अविजित चक्रवर्ती के किया है। कहानी 18 वीं शताब्दी के जमींदार बाबू नन्हकूसिंह की है,जो अपने पिता की मृत्यु के बाद अपनी सारी जायदाद गरीबों में लुटा देता है। वो बहादुर हिम्मती,दयालु और कला प्रेमी व्यक्तित्व है। उसने प्रतिज्ञा की है कि वह कभी किसी स्त्री के नजदीक नहीं जाएगा बल्कि अकेला रहेगा। वो प्रसिद्ध नर्तकी दुलारी बाई का गाना तो सुनता है लेकिन उसके कोठे पर नहीं जाता। दुलारी बाई राजमाता पन्ना देवी के बचपन की सहेली है,तो दूसरी ओर राजमाता के लिए नन्हकूसिंह अपने हृदय में दया भाव रखते हैं। काशी चेत सिंह काशी के राजा हैं। सिराजुद्दौला के मृत्यु के बाद अवध का नवाब और जनरल वारेन हेस्टिंग काशी पर अधिकार जमाना चाहते हैं और इस काम में कुबरा मौलवी उसकी मदद करता है। एक दिन दुलारी बाई के कोठे पर नन्हकूसिंह और कुबरा मौलवी के बीच झड़प हो जाती है, जिसमें नन्हकू सिंह कुबरा मौलवी को बेइज्जत कर देता है। मौलवी बदला लेने के लिए गुस्से में निकलता है और अंग्रेज के पास पहुंचता है। मौलवी काशी पर हमला करने के लिए उन्हें राजी कर लेता है। अंग्रेज काशी पर हमला कर राजा चेत सिंह और उनकी माता को कैद कर लेते हैं। जब नन्हकू सिंह यह पता चलता है तो उसकी माता को छुड़ाने का निर्णय करता है। उसकी भिड़ंत अंग्रेज सैनिकों से होती है जिसमें उसकी मृत्यु हो जाती है। अंग्रेजों और समकालीन समाज की नज़र में एक गुंडा। यह नाटक अंतरराष्ट्रीय भारत रंग महोत्सव में अपनी सहभागिता पिछले वर्ष दर्ज कर चुकी है। किन्ही कारणों से इस बार की प्रस्तुति ढ़ीली-ढाली रही। नाटक का संगीत बेहतरीन होने के बावजूद प्रभाव छोड़ते-छोड़ते रह गई। सेट की भव्यता में कमी,नाटक में गति की कमी और नाटक पर नेपथ्य के कलाकारों के साथ निर्देशकीय पकड़ की कमी साफ रेखांकित की जा सकती थी। अपने अन्य प्रस्तुतियों की तुलना में यह नाटक अपने दर्शकों को निराश करनेवाली रही। अपने कथ्य और कुछ अभिनेता के दम पर नाटक दर्शकों को अंत तक टिकाने में कामयाब रही।

मंच पर भाग लेने वाला कलाकारों में अजीत कुमार,उत्तम कुमार, ब्रजेश शर्मा, महिमा सहाय, रूबी खातून, बीनीता सिंह, कुंदन कुमार, नीलेश्वर मिश्रा, राहुल सिंह, राहुल कुमार रवि,राहुल रंजन,रोहित चन्द्रा,मो0 आसिफ, नंदकिशोर नंदू थे।

मंच परे कलाकारों में संगीत- राजू मिश्रा, हारमोनियम- मो जॉनी, रोहित चन्द्रा, नाल-गौरव कुमार, तबला-रिंकू कुमार, प्रकाश संचालन-राज कपूर, सेट-उमेश शर्मा रंग शिल्प- अजित कुमार का था।
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आलेख- राजन कुमार सिंह 








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