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Sunday, 20 January 2019
Saturday, 19 January 2019
"लोक पंच" की प्रस्तुति "नाटय शिक्षक की बहाली" 18.1.2019 को पटना में सम्पन्न
दिनांक 18 जनवरी को कालिदास रंगालय में "लोक पंच" की प्रस्तुति "नाटय शिक्षक की बहाली"
नाटक में रंगकर्मियों के जीवन पर आधारित समस्याएं, सरकार के तरफ से उदासीपन . . . .
इस नाटक की शुरुआत एक हास्य दृश्य से होता है, इसमें कुछ अभिनेता नाटक के एक दृश्य का पूर्वाभ्यास कर रहे हैं, बार-बार कोशिश करने पर भी दृश्य तैयार नहीं हो पाता है, इस दृश्य के माध्यम से दर्शकों को सहज ही पता चल जाता है कि एक निर्देशक को नाटक तैयार करने में कलाकारों के साथ कितनी मेहनत करनी पड़ती है l
नाटक में रंगकर्मियों के व्यक्तिगत जीवन के संघर्ष की अलग अलग कहानीयों को दिखाय गया है। जिसमें एक रंगकर्मी के जीवन के उस पहलू को उकेरा गया है जहाँ वो पढ़ाई के बाद भी अपने परिवार और समाज में उपेक्षित है, उन्हें स्कूल, कॉलेज में एक अदद नाट्य शिक्षक की नौकरी भी नहीं मिल सकती क्यूँ की हमारे यहां नाटक के शिक्षकों की बहाली का कोई नियम नहीं है, इस मुखर सवाल पर आकार नाटक दर्शकों के लिए रंगकर्मियों के जीवन संघर्ष से जुड़ा निम्न सवाल भी छोड़ जाता है।
नाटक खत्म होने के बाद दर्शक तालियां बजाते हैं, स्मृति चिन्ह देकर व ताली बजाकर दर्शक उन्हें सम्मानित करते हैंl
यही रंगकर्मी जब अपने घर पहुंचते हैं तो घर में इन से बेहूदा किस्म के प्रश्न पूछे जाते हैं।
क्या कर रहे हो ? नाटक करने से क्या होगा ? लोग तुम्हें लौंडा कहते हैं। नाचने वाला कहते हैं, यह सब करने से रोजी-रोटी नहीं चलेगा, कोई अच्छी घर की लड़की का हाथ तक नहीं मिलेगा।
इस तरह के अनगिनत ताने सुनने पड़ते हैं फिर भी रंगकर्मी यह सब सहने के बावजूद रंगकर्म करते रहते हैं।
नाटक के माध्यम से रंगकर्मी सरकार से मांग करते हैं की स्कूल और कालेजों में नाट्य शिक्षक की बहाली हो।
सरकार रंगकर्मियों को नौकरी दे, उन्हें रोजगार दे तभी वे भी खुलकर समाज का साथ दे सकते हैं l
नाटक के अंत में रंगकर्मी अपने हक के लिए अपनी आजादी के लिए आवाज उठाते हैं और प्रेक्षागृह में बैठे दर्शकों एवं रंगकर्मियों को मंच पर बुलाते हैं और अपने आंदोलन के साथ नाटक की समाप्ति करते हैं।
पात्र परिचय:
सूत्रधार :- मनीष महिवाल
अन्य कलाकार :
मॉडल समीर
प्रभात कुमार
दीपा दिक्षित
रजनीश पांडे
रोबन कुमार
रौशन कुमार
अमन आयुष्मान
जितेंद्र राज
आशुतोष कुमार
हीरालाल रॉय
कृष्णा सिंह
सम्राट उपाध्याय
मंच निर्माण: मॉडल समीर एवं प्रभात
प्रॉपर्टी: दीपा दीक्षित
कॉस्टयूम : रौशन
प्रकाश परिकल्पना: अभिषेक एलेक्स
प्रस्तुति नियंत्रक: राम कुमार सिंह
प्रेक्षागृह प्रभारी : संजय सिन्हा
लेखक एवं निर्देशक: मनीष महिवाल
संस्था - लोक पंच, पटना
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प्रस्तुति- लोक पंच
Saturday, 5 January 2019
इन्किलाब जिंदाबाद का पटना में 04.01.2019 को प्रस्तुत हुआ
बेडियाँ
04.01.2019 को परिकल्पना मंच के द्वारा नाटक - इन्क़लाब ज़िन्दाबाद क मंचन एनआईटी घाट, पटना पर प्रदर्शन किया गया जिसका आलेख तैयार किया था गुरुसरण सिंह ने और निर्देशक थे सुभाष कुमार.
गुलाम भारत और अंग्रेज सरकार की हुकूमत के दौर में देश को आज़ाद होने तक कि जो कहानी है। जिसमे हम आज़ाद तो हैं, परंतु आज़ादी का क्या मतलब होता है! इसके चित्रण किया गया है। क्रांतिकरी भगत सिंह और उनकी साथियों ने जो देश के लिए जिस तरह से अपनी कुर्बानी दी उसका प्रभाव पूरे भारत मे बच्चा बच्चा उनके रास्ते पर चलने को राजी हो गया और देश को एक अलग क्रंति की राह दे दी।
"सरफ़रोशी की तम्मना अब हमारे दिल में है
"सरफ़रोशी की तम्मना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाजुए कातिल में है"
देश को आज़ाद हुए आज 71 साल हो गया, लेकिन देश मे अभी भी ज्यादा बदलाव नही हुई। एक तरफ गरीब और गरीब होते चला गया और अमीर और अमीर होते चला गया। किसान, मज़दूर की वही रूप आज भी है देश मे, जिसके कारण आज भी किसान आत्महत्य कर रहे हैं! 12 से 16 घण्टे की जी तोड़ मेहनत करने के बाद भी मज़दूर भर पेट भोजन नही कर पाता और अपने बच्चों को शिक्षा भी नही दे पाता है। हिंदुस्तान आज भी जंजीर में जकड़ा हुआ प्रतीत होता है। इस बेड़ियों को तोड़ने के लिए आज भी युवा वर्ग की संघर्ष जारी है। एक खुशहाल हिंदुस्तान के सपने को संजोए रखा है।
नाट्य कलाकार थे. दीपक कुमार, दिग्विजय तिवारी, प्रदुमन, लवकुश, निशांत, विवेक और साथ में थे राजवीर, राज शेखर,सुदीप कुमार,लाडली, रूबी और सुशील, राहुल. संगीत दिया था हीरा लाल रॉय और विवेकानंद पांडेय ने और प्रस्तुति संयोजन था यशवंत मिश्रा का.
देश को आज़ाद हुए आज 71 साल हो गया, लेकिन देश मे अभी भी ज्यादा बदलाव नही हुई। एक तरफ गरीब और गरीब होते चला गया और अमीर और अमीर होते चला गया। किसान, मज़दूर की वही रूप आज भी है देश मे, जिसके कारण आज भी किसान आत्महत्य कर रहे हैं! 12 से 16 घण्टे की जी तोड़ मेहनत करने के बाद भी मज़दूर भर पेट भोजन नही कर पाता और अपने बच्चों को शिक्षा भी नही दे पाता है। हिंदुस्तान आज भी जंजीर में जकड़ा हुआ प्रतीत होता है। इस बेड़ियों को तोड़ने के लिए आज भी युवा वर्ग की संघर्ष जारी है। एक खुशहाल हिंदुस्तान के सपने को संजोए रखा है।
नाट्य कलाकार थे. दीपक कुमार, दिग्विजय तिवारी, प्रदुमन, लवकुश, निशांत, विवेक और साथ में थे राजवीर, राज शेखर,सुदीप कुमार,लाडली, रूबी और सुशील, राहुल. संगीत दिया था हीरा लाल रॉय और विवेकानंद पांडेय ने और प्रस्तुति संयोजन था यशवंत मिश्रा का.
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छायाचित्र- परिकल्पना मंच
प्रतिक्रया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com
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