मकान और घर का अन्तर
मकान होता है सर छुपाने की जगह जबकि घर होता है जहाँ कोई आदमी जीता है अपनी असली ज़िंदगी पूरे प्रेम और रिश्तों की मिठास के साथ. इसी नाज़ुक मुद्दे को उठाती ममता मेहरोत्रा की कहानी पर आधारित नाटक 'मकान' में दिखाया गया है कि विभा पूरे दिल से अपने मकान का निर्माण करती है लेकिन मुश्किल यह होती है कि उसका ख्वाब सिर्फ सीमेंट और गारे से निर्मित मकान होता है रिश्तों के जुड़ाव को वह कायम नहीं रख पाती. नतीजा होता है कि दोनो बेटे के परिवार आपस में उलझते रहते हैं और अंत में बँटवारा करके उसकी नीलामी तक कर डालते हैं. और दुर्भाग्य देखिये कि परिवार की शान के रूप में देखा जानेवाला यह आशियाना एक मयखाना बन कर रह जाता है. विभा विला हो जाता है स्वप्निल मयखाना.
ममता मेहरोत्रा की कहानी काफी सूक्षमता के साथ अपने कथ्य को रखा है. सुमन कुमार का निर्देशन कहानी की कशमकश को अभिव्यक्त रखने में पूरी तरह से सफल रहा और करिश्मा कुमारी (विभा) ने अपने किरदार को संजीदगी के साथ जीकर उनका पूरा साथ दिया. मिथिलेश कु. सिन्हा, आमिर हक, नेहा कुमारी, सृष्टि कुमारी, अखिलेश्वर प्र. सिन्हा, सितेश कु., राकेश कु., मनु राज और आदर्श प्रियदर्शी ने भी अपनी सीमाओं में अच्छा अभिनय किया. छोटी बच्ची मुन्नी की भूमिका में आराध्या सिन्हा ने अपनी नन्ही उम्र के बावजूद संवाद की असरदार अदायगी करके चौंका दिया. प्रदीप गांगुली की मंच व्यवस्था काफी सुंदर थी और सचमुच एक पारिवारिक घर का अहसास करा रही थी. हीरा लाल राय की रूप सज्जा वास्तविक जैसी थी . संगीत प्रभाव अजीत गुज्जर का था. ध्वनि नियंत्रण उपेंद्र कु., प्रकाश संचालन राज कुमार वर्मा अच्छी तरह से कर रहे थे. रीना कुमारी और मनु राज का वस्त्र विन्यास बिलकुल पारिवारिक पात्रों के अनुरूप था.
यह प्रस्तुति एक सूक्ष्म किन्तु अत्यंत महत्वपूर्ण विषय को सशक्त रूप से आगे रखने में सफल रही और इस हेतु लेखिका के साथ-साथ निर्देशक और कुछ पात्रों को विशेष रूप से श्रेय जाता है.
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समीक्षक- हेमन्त दास 'हिम' / विनीत सिन्हा
छायाचित्र- दिनेश राज
ईमेल- editorbiharidhamaka@yahoo.com
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