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Thursday, 13 June 2019
Sunday, 9 June 2019
Saturday, 25 May 2019
Thursday, 23 May 2019
Sunday, 28 April 2019
खार (मुम्बई) में "आधे अधूरे" नाटक के 25वें मंचन पर केक कटा
आधे अधूरे - एक मकान जो घर नहीं है
(नोट- नाटक की अंग्रेजी में विस्तृत सचित्र समीक्षा कल तक मेन पेज पर प्रकाशित होगी)

खार (मुम्बई) के जेफ्फ गोल्डबर्ग स्टुडियो द्वारा मोहन राकेश के प्रसिद्ध नाटक "आधे अधूरे" के 25वें मंचन के अवसर पर दिनांक 28.4.2019 को अपने प्रेक्षागृह में केक काटकर उत्सव मनाया गया. जेफ्फ गोल्डबर्ग स्वयं इस अवसर पर मौजूद थे और साथ में नाटक के निर्देशक अशोक पांडेय के अलावे कलाकार कोमल छबड़िया, उर्वशी कोतवाल, करन लाल, अफसान खान, अर्जुन तनवर के साथ-साथ नाटक की पूर्व प्रस्तुतियों में भूमिका निभानेवाले कुछ कलाकार भी उपस्थित थे. दर्शकों ने जोरदार करतल ध्वनि से इसका स्वागत किया.
जेफ्फ गोल्डबर्ग ने बताया कि उन्हें हिंदी नहीं आती मगर उन्होंने इस नाटक के बारे में सुना है आज के परिवार की सच्चाई को दिखानेवाला यह एक विलक्षण नाटक है. इसलिए इसके निर्माण के प्रस्ताव को उन्होंने झट से स्वीकृति दे दी. निर्देशक अशोक पांडेय ने यह भी बताया कि इस नाटक का अगला मंचन एनसीपीए प्रेक्षागृह में किया जाएगा.
नाटक "आधे अधूरे" एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार की कहानी है जिसमें एक मकान में कुछ लोग मम्मी, डैडी, दीदी, भाई और बहन की शक्ल में रह रहे हैं पर परिवार जैसा कुछ नहीं है. सभी अपनी अपनी मनमानी कर रहे हैं. कोई किसी की सुन नहीं रहा. न किसी को किसी से प्रेम है न सहानुभूति. यहाँ तक कि किसी को साथ रहने की इच्छा भी नहीं है फिर भी साथ रह रहे हैं.
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आलेख - बेजोड़ इंडिया ब्यूरो
छायाचित्र - बेजोड़ इंडिया
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com
जेफ्फ गोल्डबर्ग ने बताया कि उन्हें हिंदी नहीं आती मगर उन्होंने इस नाटक के बारे में सुना है आज के परिवार की सच्चाई को दिखानेवाला यह एक विलक्षण नाटक है. इसलिए इसके निर्माण के प्रस्ताव को उन्होंने झट से स्वीकृति दे दी. निर्देशक अशोक पांडेय ने यह भी बताया कि इस नाटक का अगला मंचन एनसीपीए प्रेक्षागृह में किया जाएगा.
नाटक "आधे अधूरे" एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार की कहानी है जिसमें एक मकान में कुछ लोग मम्मी, डैडी, दीदी, भाई और बहन की शक्ल में रह रहे हैं पर परिवार जैसा कुछ नहीं है. सभी अपनी अपनी मनमानी कर रहे हैं. कोई किसी की सुन नहीं रहा. न किसी को किसी से प्रेम है न सहानुभूति. यहाँ तक कि किसी को साथ रहने की इच्छा भी नहीं है फिर भी साथ रह रहे हैं.
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आलेख - बेजोड़ इंडिया ब्यूरो
छायाचित्र - बेजोड़ इंडिया
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com
Monday, 15 April 2019
खार (मुम्बई) में "सखाराम बाइंडर" का मंचन 14.4.2019 को हुआ और 19, 20 और 21 अप्रील को भी होगा
जिस्मानी भूख की भयावह अंतर्कथा
सखाराम बाइंडर क्रूर है, शराबी है, वेश्यागामी है, औरत को सिर्फ एक भोगने की वस्तु समझता है और हर छ: महीने पर पुरानी को भगाकर एक नई औरत को घर पर ले आता है. मगर इस वहशी जानवर में कुछ खूबियाँ भी हैं - वह झूठा नहीं है. औरतों पर क्रूरता करने का वह एग्रीमेंट बनवा कर ही क्रूरता करता है बिल्कुल पूर्व घोषणा के साथ. हालाँकि वह धर्म-कर्म में विश्वास नहीं रखता लेकिन इतना इतना जरूर समझता है कि मुसलमान और हिंदू में कोई फर्क नहीं है और एक मुसलमान को आरती करने से रोकने पर इतना आगबबूला होता है कि अपनी तत्कालीन रखैल लक्ष्मी को घर से निकाल देता है.
नाटक किसी आदर्श की स्थापना के उद्देश्य से तो लिखी गई नहीं लगती है लेकिन स्त्री-पुरुष सम्बंध के बहुत सारे रहस्य स्वत: उद्घाटित होते चले जाते हैं. जहाँ खुद को पूरी तरह से समर्पित करनेवाली लक्ष्मी का सखाराम की नजरों में कोई महत्व नहीं है वहीं बात-बात पर अपमानित किये जाने के बावजूद वह चम्पा पर बुरी तरह से फिदा है. उसके लिए वासना ही सबकुछ है. वहीं पति का एक दूसरा रूप भी दिखता है चम्पा के पति के रूप में जिसे लात मारकर वह चली आई है सखाराम के पास. वह पति हालाँकि चम्पा के प्यार में पागल है पर दर-असल उसे भी सिर्फ चम्पा का जिस्म ही चाहिए और कुछ नहीं.
लक्ष्मी का किरदार भी अजीब है. बार बार लतियाये जाने के बावजूद वह भी एक प्रकार की जिस्मानी भूख के कारण ही सखाराम की दिवानी बनी हुई है. दो बार सखाराम के द्वारा धकिया कर निकाले जाने के बावजूद तीसरी बार फिर लौट आती है सखाराम को अपने पति के रूप में हृदय में पूजती हुई एक भिखारिन नौकरानी की हैसियत के साथ क्योंकि बिस्तर पर सखाराम का साथ देनेवाली तो चम्पा है.
एक और परत और शायद सबसे महत्वपूर्ण परत यह है कि जो सखाराम स्वयं डंके की चोट पर औरतों को बदलना अपना अधिकार समझता है वहीं अपने रखैल की दूसरे पुरुष से सम्बंध की बात उसके लिए इतनी असह्य हो जाती है कि वह उसकी हत्या कर देता है.
इस मंचित नाटक के निर्देशक अशोक पांडेय ने बहुत ही संजीदगी के साथ पूरे नाटक को पेश करने में पूरी कामयाबी पायी है. सत्तर के दशक के विजय तेंडेलुकर लिखित इस नाटक का आधुनिक रूपांतर भी उन्होंने किया गया है जिससे आपको यह आज का नाटक लगता है. सुश्री एस मिश्रा, सोनाली नागरानी, हर्शित शाह, और अनिल मिश्रा ने यथार्थवादी अभिनय का अच्छा नमूना प्रस्तुत किया. तन्वी गौरी मेहता और प्रणव गुप्ता इस प्रस्तुति में सहायक निर्देशक थे. आदि चौधरी का संगीत था.
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आलेख- हेमन्त दास 'हिम'
छायाचित्र - बेजोड़ इंडिया ब्लॉग
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com
(नोट- 1. पूरी सचित्र समीक्षा अंग्रेजी में शीघ्र मुख्य पेज पर उपलब्ध होगी.
2. उस दिन उपस्थित हुए जो कलाकार या दर्शक अपना चित्र इस रिपोर्ट में शामिल करवाना चाहते हैं कृपया ऊपर दिये गए ईमेल आईडी पर भेजें.)
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नाटक के निर्देशक के साथ |
Friday, 5 April 2019
"आषाढ़ का एक दिन" दस्तक द्वारा पटना में 6.4.2019 को प्रदर्शित होगा
कालिदास की प्रसिद्द महाकाव्य मेघदूत पर आधारित मोहन राकेश लिखित आषाढ़ का एक दिन एक विश्वप्रसिद्ध नाटक है, जिसकी अलग-अलग समय पर अलग-अलग नाट्यदलों द्वारा मंचन और व्याख्या होती रही है । वैसे तो उपरी तौर पर इस नाटक के केन्द्र में प्रेम और विरह है लेकिन गूढ़ अर्थ में यह रचनाकार और प्रकृति, भावना और यथार्थ की एक ऐसी बौद्धिक महागाथा है, जिसमें संवेदनात्मक ज्ञान और ज्ञानात्मक संवेदना का द्वन्द साफ़-साफ़ दिखाई पड़ता है । वहीं इस नाटक के मूल में रचना, रचनाकार और उसकी प्रेरणा, अवसर और पलायन की पीड़ा और सुख भी है, तो भौतिकता और कर्तव्य का द्वन्द के बीच में उलझे मानवीय जीवन भी है । यहाँ स्वीकार का अस्वीकार और अस्वीकार का स्वीकार भी है तो एक दूसरे के प्रति मोह भी । इन सबके बीच किसी भी स्थिति में निःस्वार्थ अटल रहने का मल्लिकाई साहस भी है, जो अपने स्वार्थ से ज़्यादा महत्व भावना में भावना के वरण को देती है और तमाम चुनौतियाँ झेलते हुए अपने कर्तव्य के मार्ग से कभी भी पलायन नहीं करती ।
दस्तक पटना की प्रस्तुति
आषाढ़ का एक दिन
लेखक - मोहन राकेश
निर्देशक - पुंज प्रकाश
स्थान - कालिदास रंगालय, पटना
दिनांक - 6 अप्रैल 2019
समय - संध्या 6:30 बजे
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समाचार स्रोत - सुभाष कुमार
Monday, 1 April 2019
Picture with some artists of the Marathi play "Chal Tujhi Seat Pakki" staged in Borivali (Mumbai) on 1.4.2019
(Full report of the play will appear on the Main page)
This was a Marathi play full of comedy and presenting a threadbare account of selfishness prevalent in a nuclear set-up of the family. Thanks to the brilliant director Nitin Dixit for this picture.
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(From left, director Nitin Dixit, I, Omkar Raut and Mangesh Kadam |
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Prabodhankar Auditorium, Borivali (It is a huge auditorium with state-of-the-art facilities) |
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Banner of Marathi play |
Friday, 29 March 2019
Sunday, 24 March 2019
Artists of the play "Fly on" staged in Mumbai on 24.3.2019
Note- The Drama Review of this play will appear later on the Main Page of Bejod India blog.
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Saturday, 23 March 2019
Friday, 22 March 2019
Photo album of "Poras-sikandar" staged in Patna on 20.1.2019
नाटक की हिंदी में संक्षिप्त कहानी अंतिम चित्र में देखिये.
See the artists of the play after the show- Click here
Photographs taken by - Hemant Das 'Him'

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Photographs taken by - Hemant Das 'Him'

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