जिस्मानी भूख की भयावह अंतर्कथा
सखाराम बाइंडर क्रूर है, शराबी है, वेश्यागामी है, औरत को सिर्फ एक भोगने की वस्तु समझता है और हर छ: महीने पर पुरानी को भगाकर एक नई औरत को घर पर ले आता है. मगर इस वहशी जानवर में कुछ खूबियाँ भी हैं - वह झूठा नहीं है. औरतों पर क्रूरता करने का वह एग्रीमेंट बनवा कर ही क्रूरता करता है बिल्कुल पूर्व घोषणा के साथ. हालाँकि वह धर्म-कर्म में विश्वास नहीं रखता लेकिन इतना इतना जरूर समझता है कि मुसलमान और हिंदू में कोई फर्क नहीं है और एक मुसलमान को आरती करने से रोकने पर इतना आगबबूला होता है कि अपनी तत्कालीन रखैल लक्ष्मी को घर से निकाल देता है.
नाटक किसी आदर्श की स्थापना के उद्देश्य से तो लिखी गई नहीं लगती है लेकिन स्त्री-पुरुष सम्बंध के बहुत सारे रहस्य स्वत: उद्घाटित होते चले जाते हैं. जहाँ खुद को पूरी तरह से समर्पित करनेवाली लक्ष्मी का सखाराम की नजरों में कोई महत्व नहीं है वहीं बात-बात पर अपमानित किये जाने के बावजूद वह चम्पा पर बुरी तरह से फिदा है. उसके लिए वासना ही सबकुछ है. वहीं पति का एक दूसरा रूप भी दिखता है चम्पा के पति के रूप में जिसे लात मारकर वह चली आई है सखाराम के पास. वह पति हालाँकि चम्पा के प्यार में पागल है पर दर-असल उसे भी सिर्फ चम्पा का जिस्म ही चाहिए और कुछ नहीं.
लक्ष्मी का किरदार भी अजीब है. बार बार लतियाये जाने के बावजूद वह भी एक प्रकार की जिस्मानी भूख के कारण ही सखाराम की दिवानी बनी हुई है. दो बार सखाराम के द्वारा धकिया कर निकाले जाने के बावजूद तीसरी बार फिर लौट आती है सखाराम को अपने पति के रूप में हृदय में पूजती हुई एक भिखारिन नौकरानी की हैसियत के साथ क्योंकि बिस्तर पर सखाराम का साथ देनेवाली तो चम्पा है.
एक और परत और शायद सबसे महत्वपूर्ण परत यह है कि जो सखाराम स्वयं डंके की चोट पर औरतों को बदलना अपना अधिकार समझता है वहीं अपने रखैल की दूसरे पुरुष से सम्बंध की बात उसके लिए इतनी असह्य हो जाती है कि वह उसकी हत्या कर देता है.
इस मंचित नाटक के निर्देशक अशोक पांडेय ने बहुत ही संजीदगी के साथ पूरे नाटक को पेश करने में पूरी कामयाबी पायी है. सत्तर के दशक के विजय तेंडेलुकर लिखित इस नाटक का आधुनिक रूपांतर भी उन्होंने किया गया है जिससे आपको यह आज का नाटक लगता है. सुश्री एस मिश्रा, सोनाली नागरानी, हर्शित शाह, और अनिल मिश्रा ने यथार्थवादी अभिनय का अच्छा नमूना प्रस्तुत किया. तन्वी गौरी मेहता और प्रणव गुप्ता इस प्रस्तुति में सहायक निर्देशक थे. आदि चौधरी का संगीत था.
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आलेख- हेमन्त दास 'हिम'
छायाचित्र - बेजोड़ इंडिया ब्लॉग
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com
(नोट- 1. पूरी सचित्र समीक्षा अंग्रेजी में शीघ्र मुख्य पेज पर उपलब्ध होगी.
2. उस दिन उपस्थित हुए जो कलाकार या दर्शक अपना चित्र इस रिपोर्ट में शामिल करवाना चाहते हैं कृपया ऊपर दिये गए ईमेल आईडी पर भेजें.)
नाटक के निर्देशक के साथ |
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